Friday, April 27, 2018

संघर्ष करता दरभंगा --27-4-18

संघर्ष करता दरभंगा --


प्रकाश भाई ने यह एहसास दिलाया की दरभंगा अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल के आयोजको ने अपने बुलाये गेस्टो का जहां बिलकुल ध्यान नही रखा , उपेक्षित रखा वही पर प्रकाश बंधू ने आखरी दिन यह बता दिया की अभी मैथली का आथित्य ज़िंदा है |



दरभंगा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के दौरान मेरी नजर एक व्यक्तित्व पर पड़ी बंदे के अस्त व्यस्त कपडे बाल बिखरे कुछ समय के अंतराल पर वो बन्दा आडोटोरियम की सीढियों पर अकेला बैठकर अपनी जेब से सिगरेट का पैकेट निकालता और अपनी साँसों से वो सिगरेट को एक अंदाज देता धीरे धीरे सुलगती सिगरेट व चारो तरफ घुमती उसकी आँखे जैसे कुछ खोज रही हो , उसको देखते हुए मुझे फैज़ की नज्म मेरे जेहन में घुमने लगी |
'' शफ़क़ की राख में जल-बुझ गया सितारा-ए-शाम
शबे-फ़िराक़ के गेसू फ़ज़ा में लहराये

कोई पुकारो कि इक उम्र होने आयी है
फ़लक़ को क़ाफ़िला-ए-रोज़ो-शाम ठहराये

ये ज़िद है यादे-हरीफ़ाने-बादा पैमां की
कि शब को चांद न निकले, न दिन को अब्र आये

सबा ने फिर दरे-ज़िंदां पे आ के दी दस्तक
सहर क़रीब है, दिल से कहो न घबराये
मेरी उत्सुकता बढ़ चली आखरी दिन उससे परिचय हुआ उस समय मेरे साथ राज त्रिपाठी , फिल्म अभिनेता रफी खान व चम्बल पे काम करने वाले साथी शाह आलम , वरिष्ठ साहित्यकार बड़े भाई श्याम स्नेही जी थे | मेरा कैमरा इन लोगो पर चला वही प्रकाश बंधू से मैं रूबरू हुआ और मैं उनको लेकर एक तरफ हुआ , सिनेमा - थियेटर पे बात करने को हाजिर हूँ सिनेमाटोग्राफर और रंग निर्देशक प्रकाश बन्धु से बातचीत के कुछ अंश -

कबीर -- आप रंगमंच से कैसे जुड़े , और आपकी शिक्षा ?

प्रकाश बन्धु -- प्रकाश बन्धु को रंगमंचीय संस्कार विरासत में मिली। माता-पिता दोनों ही भारत सरकार के सुचना एवं प्रसारण मंत्रालय के गीत और नाटक प्रभाग में बतौर कलाकार थे और बड़े भाई दीपक बन्धु राष्ट्रिय
नाट्य विद्यालय अभिनय में स्नातक। नई दिल्ली बचपन में पढ़ाई
के दौरान बड़े भाई के दिशा- निर्देश पर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा आयोजित बाल रंग शिविर में रंग निर्देशक शुरेश शेट्टी के निर्देशन में पहली बार मंच से रिश्ता क़ायम किया। स्नातक के दौरान अलग- अलग नाट्य कार्यशालाओं में भाग लेकर अपने आपको रंग-तकनीकों से समृद्ध किया।

कबीर -- किस तरह का रंगमंच करते है आप ? आपने नाटको में कितने प्रयोग किये है ?

प्रकाश बन्धु -- 2001 में दरभंगा भ्रमण के दौरान शहर में वर्षों से चली आ रंगमंचीय खामोशी को तोड़ते हुए "थिएटर यूनिट, दरभंगा" की स्थापना कर दरभंगा को ही अपनी कर्म भूमि बनाया। इस दौरान प्रकाश के सामने कई चुनौतियाँ भी आई जिनमे पहली समस्या थी रंगमंच के लिए दर्शक वर्ग तैयार करना और दूसरी सबसे बड़ी चुनौती थी शहर में एक भी प्रेक्षागृह का न होना। उन दिनों सिर्फ एक चबूतरा नुमा मुक्ताश मंच हुआ करता था जो पुरे दरभंगा का सांस्कृतिक केंद्र था जिसे उस समय के तात्कालिक कुलपति द्वारा
तोड़वा दिया गया और उसके स्थान पर विश्वविद्यालय द्वारा एक घटिया सा सामुदायिक भवन का निर्माण करवा दिया गया जो नाटकों के मंचन के लीये बिलकुल भी उचित नहीं है। तत्पश्चात प्रकाश बन्धु ने नाटकों के मंचन के लिए अलग अलग उपयुक्त स्थानों का चयन किया। कभी भारत सरकार के गीत एवं नाटक प्रभाग के कार्यालय का बरामदा तो कभी दरभंगा का किला या कोई अन्य पौराणिक ईमारत तो कभी टेंट हाउस द्वारा स्टेज बनवाकर। पर ये अत्याधिक खर्चीला होता। प्रकाश बताते हैं कि पिछले तीन वर्षों में मिथिला विश्वविद्यालय द्वरा एक बार पुनः नाट्य विधा के स्नातकोत्तर की पढ़ाई आरम्भ की गयी। विभाग के पास अपना एक छोटा सा प्रेक्षागृह है जो बहुत बेहतर तो नहीं है पर किसी तरह नाटक तो किया ही जा सकता है। नाट्य विभाग ने रंगकर्मियों के लिए इसे पंद्रह सौ रुपय प्रतिदिन पर देना भी शुरू किया पर इसमें भी कई समस्याएं आती ही रहती हैं। पिछले दिनों "रुस्तम सोहराब" नाटक के मंचन के दौरन तो विभागाध्यक्ष ने तो हद ही कर डाला। इस पर हंसी के सिवा अब कुछ और नहीं आती। हाँ वहां पढने वाले छात्रों को लेकर चिंता अवश्य होती है। बहरहाल, अभी प्रकाश बन्धु स्थानीय समाज सेवी मित्र श्री नारायण जी के साथ मिलकर दरभंगा में रंगमंच के लिये एक उचित प्रेक्षागृह के निर्माण की योजना में लगें हुए है। "साधन की अल्पता से महती इक्षाएं कभी अवरुद्ध नहीं होतीं" को अपना मूलमन्त्र मानने वाले प्रकाश बन्धु ने दरभंगा रंगमंच को आधुनिकता के साँचे ढाल एक नई दिशा देने का काम किया है। पिछले चौदाह-पंद्रह वर्षों में प्रकाश बन्धु ने नाटकों की संख्या बढ़ने से ज़्यादा दरभंगा के रंगमंच को तकनिकी,रूप से समृद्ध बनाने और रंगमंच में दर्शकों की भूमिका पर ज़्यादा ज़ोर दिया है। जिसका असर दरभंगा रंगमंच पर साफ़-साफ़ दीखता है। आज बिहार की राजधानी पटना हो या देश की राजधानी दिल्ली, गैर व्यावसायिक नाट्य संस्थाओं के लीये महंगे और बड़े
नाटक(ताम-झाम वाले) बिना सरकारी अनुदान के संभव नहीं है। वहीँ प्रकाश बन्धु बिना किसी सहायता और अनुदान के वर्ष भर अलग-अलग नाट्य प्रस्तुतियाँ देते रहते हैं। आपको बताते चलें कि दरभंगा जैसे शहर में विपरीत परिस्थितियों में भी प्रकाश एक से डेढ़ लाख के बजट का नाटक करते हैं,वो भी टिकट राशि के दम पर जिसका हालिया उदहारण है "आठवाँ सर्ग" और
"रुस्तम सोहराब"। पिछले पंद्रह वर्षों में प्रकाश बन्धु अपनी संस्था के साथ दरभंगा को दर्जनों देसी-विदेशी नाटकों जैसे- अनहद चेहरें, महामहीम, जो घर जारै अपना, बिच्छू, बर्थडे प्रेजेंट, नींद क्यों रात भर नहीं आती, मरणोपरांत, अभिनव जयदेव विद्ध्यापति, अंधा युग, आठवाँ सर्ग, बादशाहत का ख़ात्मा इत्यादि जैसे पूर्णकालिक प्रस्तुतियों के साथ नाट्य कार्यशाला, तीन दिवसीय नाट्य महोत्सव "रंग पेठिया"दिवसीय ( a heart of art and culture), रंगमंच विषयक संगोष्ठी, का भी आयोजन करते हैं।

कबीर आप लम्बे समय से रंगमंच से जुड़े रहने के बाद दरभंगा से निकल कर मुंबई की हुई आपने वहाँ पर क्या क्या कार्य किये है ?

प्रकाश बंधू -- मुम्बई में बतौर अस्सिस्टेंट कैमरामैन प्रकाश बन्धु ने प्रसिद्द कैमरामैन अमित रॉय (जिन्होंने सरकार,निशब्द,आग जैसी कई महत्वपूर्ण सिनेमा का फिल्मांकन किया है।) के साथ काम किया। तत्पश्चात बतौर इंडीपेंडेंट freelance कैमरामैन काम करना शुरू किया। The Awakening,
Angela's Self Requiem, Miyaan Kal Aana, Akhiri Decision(2nd. Unit), Ata Pata Lapata (2nd. Unit) जैसी फिल्मों के टेलीविज़न धारावाहिक जैसे- अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो, विजय देश की आँखें, बाबा ऐसा वार ढूंढो, प्रतिज्ञा, क्राइम पेट्रोल, धरमवीर, बालिका वधु, पृथ्वीराज चौहान इत्यादि का फिल्मांकन किया। प्रकाश बन्धु रंगमंच के लिए पूरी तरह समर्पित है , फिलहाल अपनी तंगहाली में भी प्रकाश भाई ने यह एहसास दिलाया की दरभंगा अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल के आयोजको ने अपने बुलाये गेस्टो का जहां बिलकुल ध्यान नही रखा , उपेक्षित रखा वही पर प्रकाश बंधू ने आखरी दिन यह बता दिया की अभी मैथली का आथित्य ज़िंदा है |

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (29-04-2017) को "कर्तव्य और अधिकार" (चर्चा अंक-2955) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आदरणीय शास्त्री जी आपका आभार

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