Monday, February 12, 2018

अछूत समस्या ---------12-2-18

यह लेख जितना उस वक्त मौजू था , आज भी उतना ही मौजू है

अछूत -- समस्या

{ काकीनाड़ा में 1923 में कांग्रेस - अधिवेशन हुआ | मुहम्मद अली जिन्ना ने अपने अध्यक्षीय भाषण में आजकल की अनुसूचित जातियों को , जिन्हें उन दिनों 'अछूत 'कहा जाता था , हिन्दू और मुस्लिम मिशनरी संस्थाओं में बात देने का सुझाव दिया |
हिन्दू और मुस्लिम आमिर लोग इस वर्ग - भेद को पक्का करने के लिए धन देने को तैयार थे |
इस प्रकार अछूतों के यह 'दोस्त ' उन्हें धर्म के नाम पर बाटने की कोशिशे करते थे | उसी समय जब इस मसले पर बहस का वातावरण था , 'भगत सिंह ने ' अछूत का सवाल ' नामक लेख लिखा | इस लेख में श्रमिक वर्ग की शक्ति व सीमाओं का अनुमान लगाकर उसकी प्रगति के लिए ठोस सुझाव दिए गये है | भगत सिंह का यह लेख जून , १९२८ के कीर्ति में ' विद्रोही ' नाम से प्रकाशित हुआ था |}
हमारे देश - जैसे बुरे हालात किसी दूसरे देश के नही हुए | यहाँ अजब - अजब सवाल उठते रहते है | एक अहम् सवाल अछूत - समस्या है | समस्या यह है कि ३० करोड़ की जनसख्या वाले देश में जो ६ करोड़ लोग अछूत कहलाते है , उनके स्पर्श मात्र से धर्म भ्रष्ट हो जाएगा ! उनके मंदिरों में प्रवेश से देवगन नाराज हो उठेंगे ! कुए से उनके द्वारा पानी निकालने से कुआँ अपवित्र हो जाएगा ! ये सवाल बीसवी सदी में किये जा रहे है , जिन्हें कि सुनते ही श्रम आती है |
हमारा देश बहुत अध्यात्मवादी है , लेकिन हम मनुष्य को मनुष्य का दर्जा देते हुए भी झिझकते है | जबकि पूर्णतया भौतिकवादी कहलाने वाला यूरोप कई सदियों से इन्कलाब की आवाज उठा रहा है | उन्होंने अमेरिका और फ्रांस की क्रांतियो के दौरान ही समानता की घोषणा कर दी थी | आज रूस ने भी हर प्रकार का भेदभाव मिटाकर क्रान्ति के लिए कमर कसी हुई है | हम सदा ही आत्मा - परमात्मा के वजूद को लेकर चिंतित होते तथा इस जोरदार बहस में उलझे हुए है कि क्या अछूत को जनेऊ दे दिया जाएगा ? वे वेद - शास्त्र पढने के अधिकारी है अथवा नही हा? हम उलाहना देते है कि हमारे साथ विदेशो में अच्छा सलूक नही होता | अंग्रेजी शासन हमे अंग्रेजो के समान नही समझता | लेकिन क्या हमे यह शिकायत करने का अधिकार है ?
सिंध के एक मुस्लिम सज्जन श्री नूर मुहम्मद ने , जो बम्बई कौसिल सदस्य है , इस विषय पर १९२६ में खूब कहा --- ''If the Hindu society refuses to allow other human beings , Fellow creatuures so that to attend public schools , and if ... the president of local board representing so many lakhs of people in this houses refuses to allow his fellows and brothers the elementary human right of having water to drink , what right have they to ask for more rights from the bureaucracy ? Before we accuse people coming from other lands , we should see how we ourselves behave toward our own people .... How can should we ask for greater politcal rights when we ourselves deny elementary rights of human beings ..''
वे कहते है कि जब तुम एक इंसान को पीने के लिए पानी देने से भी इनकार करते हो , जब तुम उन्हें स्कूल में भी पढने नही देते तो तुम्हे क्या अधिकार है कि अपने लिए अधिक अधिकारों की माँग करो ? जब तुम एक इंसान को समान अधिकार देने से भी इनकार करते हो तुम अधिक राजनैतिक अधिकार मागने के कैसे अधिकारी बन गये ?
बात बिलकुल खरी है | लेकिन यह क्योकि एक मुस्लिम ने कही है इसलिए हिन्दू कहेंगे कि देखो , वह उन अछूतों को मुसलमान बनाकर अपने में शामिल करना चाहते है !
जब तुम उन्हें इस तरह पशुओ से भी गया - बीता समझोगे तो वह जरुर ही दुसरे धर्मो में शामिल; हो जायेगे , जिनमे उन्हें अधिक अधिकार मिलेंगे , जहां उनसे इंसानों - जैसा व्यवहार किया जाएगा | फिर यह कहना कि देखो जी , ईसाई और मुसलमान हिन्दू कौम को नुक्सान पहुचा रहे है , व्यर्थ होगा |
कितना स्पष्ट कथन है , लेकिन यह सुनकर सभी तिलमिला उठते है | ठीक इसी तरह की चिंता हिन्दुओ को भी हुई | सनातनी पंडित भी कुछ - न - कुछ इस मसले पर सोचने लगे | बीच - बीच में बड़े 'युगांतकारी ' कहे जाने वाले भी शामिल हुए |
पटना में हिन्दू महासभा का सम्मेलन लाला लाजपतराय -- जो कि अछूतों के बहुत पुराने समर्थक चले अ रहे है -- की अध्यक्षता में हुआ , तो जोरदार बहस छिड़ी | अच्छी नोकझोक हुई | समस्या यह थी कि अछूतों को यज्ञोपवित धारण करने का हक है अथवा नही ? तथा क्या उन्हें वेद - शास्त्रों का अध्ययन करने का अधिकार है ? बड़े - बड़े समाज - सुधारक तमतमा गये , लेकिन लालजी ने सबको सहमत कर दिया तथा यह दो बाते स्वीकृत कर हिन्दू धर्म की लाज रख ली | वरना जरा सोचो , कितनी श्रम की बात होती | कुत्ता हमारी गोद में बैठ सकता है | हमारी रसोई में नि:संग फिरता है , लेकिन एक इंसान का हमसे स्पर्श हो जाए तो बस धर्म भ्रष्ट हो जाता है | इस समय मालवीय जी - जैसे बड़े समाज सुधारक , अछूतों के बड़े प्रेमी और न जाने क्या - क्या पहले एक मेहतर के हाथो गले में हार डलवा लेते है , लेकिन कपड़ो सहित स्नान किये बिना स्वंय को अशुद्द समझते है ! क्या खूब यह चाल है | सबको प्यार करनेवाले भगवान की पूजा करने के लिए मंदिर बना है लेकिन वहाँ अछूत जा घुसे तो वह मंदिर अपवित्र हो जाता है | भगवान रुष्ट हो जाता है ! घर की जब यह स्थिति हो तो बाहर हम बराबरी के नाम पर झगड़ते अच्छे लगते है ? तब हमारे इस रवैये में कृतघ्नता की भी हद पायी जाती है | जो निम्नतम काम करके हमारे लिए सुविधाओं को उपलब्ध करते है उन्हें ही हम दुरदुराते है | पशुओ की हम पूजा कर सकते है , लेकिन इन्सान को पास नही बिठा सकते !
आज इस सवाल पर बहुत शोर हो रहा है | उन विचारों पर आजकल विशेष ध्यान दिया जा रहा है | देश में मुक्ति - कामना जिस तरह बढ़ रही है , उसमे साम्प्रदायिक भावना ने और कोई लाभ पहुचाया हो अथवा नही लेकिन एक लाभ जरुर पहुचाया है | अधिक अधिकारों की मांग के लिए अपनी - अपनी कौम की संख्या बढाने की चिंता सभी को हुई है | मुस्लिमो ने जरा ज्यादा जोर दिया | उन्होंने अछूतों को मुसलमान बनाकर अपने बराबर अधिकार देने शुरू कर दिए | इससे हिन्दुओ के अहम् को चोट पहुची | स्पर्धा बढ़ी | फसाद भी हुए | धीरे - धीरे सिखों ने भी सोचा कि हम पीछे न रह जाए | उन्होंने भी अमृत छकाना आरम्भ कर दिया |
हिन्दू - सिखों के बीच अछूतों के जनेऊ उतरने या केश कटवाने के सवालों पर झगड़े हुए | अब तीनो कौमे अछूतों को अपनी - अपनी ओर खीच रही है | इसका बहुत शोर - शराबा है | उधर ईसाई चुपचाप उनका रूतबा बधा रहे है | चलो , इस सारी हलचल से ही देश के दुर्भाग्य की लानत दूर हो रही है |
इधर जब अछूतों ने देखा कि उनकी वजह से इनमे फसाद हो रहे है तथा उन्हें हर कोई अपनी - अपनी खुराक समझ रहा है तो वे अलग ही क्यों न सगठित हो जाए ? इस विचार के अमल में अंग्रेजी सरकार का कोई हाथ हो अथवा न हो लेकिन इतना अवश्य है कि इस प्रचार में सरकारी मशीनरी का काफी हाथ था | 'आदि धर्म मंडल ' जैसे संगठन उस विचार के प्रचार का परिणाम है |
अब एक सवाल और उठता है कि इस समस्या का सही निदान क्या हो ? इसका जबाब बड़ा अहम है | सबसे पहले यह निर्णय कर लेना चाहिए कि सब इन्सान समान है तथा न तो कोई जन्म से कोई भिन्न पैदा हुआ और न कार्य - विभाजन से | अर्थात क्योकि एक आदमी गरीब मेहतर के घर पैदा हो गया है , इसलिए जीवन - भर मैला साफ़ करेगा और दुनिया में किसी तरह के विकास का कम पाने का उसे कोई हक नही है , ये बाते फिजूल है | इस तरह हमारे पूर्वज आर्यों ने इनके साथ ऐसा अन्यायपूर्ण व्यवहार किया तथा उन्हें नीच कहकर दुत्कार दिया एवं निम्न कोटि के कार्य करवाने लगे | साथ ही यह भी चिंता हुई कि कही ये विद्रोह न कर दें , तब पुनर्जन्म के दर्शन का प्रचार कर दिया कि यह तुम्हारे पूर्व जन्म के पापो का फल है | अब क्या हो सकता है ? चुपचाप दिन गुजारो ! इस तरह उन्हें धैर्य का उपदेश देकर वे लोग उन्हें लम्बे समय तक के लिए शांत करा गये | लेकिन उन्होंने बड़ा पाप किया | मानव के भीतर की मानवीयता को समाप्त कर दिया | आत्मविश्वास एवं स्वावलम्बन की भावनाओं को समाप्त कर दिया | बहुत दमन अन्याय किया गया | आज उस सबके प्रायश्चित का वक्त है |
इसके साठग एक दूसरी गडबडी हो गयी | लोगो के मनो में आवश्यक कार्यो के प्रति घृणा पैदा हो गयी | हमने जुलाहे को भी दुत्कारा | आज कपड़ा बुननेवाला अछूत समझा जाता है | यु पी की तरफ कहार को भी अछूत समझा जाता है | इससे बड़ी गड़बड़ पैदा हुई | ऐसे में विकास की प्रक्रिया में रूकावटे पैदा हो रही है |
इन तबको को अपने समक्ष रखते हुए हमे चाहिए कि हम न इन्हें अछूत कहे और न समझे | बस , समस्या हल हो जाती | नौजवान भारत सभा तथा नौजवान कांग्रेस ने जो ढंग अपनाया है , वह काफी अच्छा है | जिन्हें आज तक अछूत कहा जाता रहा उनसे अपने इन पापो के लिए क्षमा - याचना करनी चाहिए तथा उन्हें अपने - जैसा इंसान समझना , बिना अमृत छकाये , बिना कलमा पढाये या शुद्धि किये उन्हें अपने में शामिल करके उनके हाथ से पानी पीना यही उचित ढंग है | और आपस में खीचतान करना और व्यवहार में कोई भी हक न देना , कोई ठीक बात नही है |
जब गाँवों में मजदूर - प्रचार शुरू हुआ उस समय किसानो को सरकारी आदमी यह बात समझाकर भडकाते थे की देखो , यह भंगी - चमारो को सर पर चढा रहे है और तुम्हारा काम बंद करावेंगे | बस किसान इतने में भडक गये | उन्हें याद रहना चाहिए कि उनकी हालत तब तक नही सुधर सकती जब तक कि वे इन गरीबो को नीच और कमिं कहकर अपनी जुटी के नीचे दबाए रखना चाहते है | अक्सर कहा जाता है किवह साफ़ नही रहते | इसका उत्तर साफ़ है -- वे गरीब है | गरीबी का इलाज करो | ऊँचे - ऊँचे कुलो के गरीब लोग भी कोई कम गंदे नही रहते | गंदे काम करने का बहाना भी नही चल सकता , क्योकि माताए बच्चो का मैला साफ़ करने से मेहतर तथा अछूत तो नही हो जाती |
लेकिन यह काम उतने समय तक नही हो सकता जितने समय तक कि अछूत कौमे अपने आप को सगठित न कर लें | हम तो समझते है कि उनका स्वंय को अलग संगठनबद्ध करना तथा मुस्लिमो के बराबर गिनती में होने के कारण उनके बराबर अधिकारों की मांग करना बहुत आशाजनक संकेत है | या तो साम्प्रदायिक भेद का झझंट ही खतम करो , नही तो उनके अधिकार उन्हें दे दो | कौसिलो और असेम्बलियो का कर्तव्य है किवे स्कूल - कालेज , कुए तथा सडक के उपयोग की पूरी स्वतंत्रता उन्हें दिलाये | जबानी तौर पर ही नही , वरन साथ ले जाकर उन्हें कुँओं पर चढाये | उनके बच्चो को स्कुलो में प्रवेश दिलाये | लेकिन जिस लेजिस्लेटिव में बाल - विवाह के विरुद्ध पेश किये बिल तथा मजहब के बहाने हाय - तौबा मचाई जाती है , वहाँ वे अछूतों को अपने साथ शामिल करने का साहस कैसे कर सकते है ?
इसलिए हम मानते है कि उनके जन - प्रतिनिधि हो | वे अपने लिए अधिक अधिकार मांगे | हम तो साफ़ कहते है कि उठो अछूत कहलाने वाले असली जन - सेवको तथा भाइयो उठो ! अपना इतिहास देखो | गुरु गोविन्द सिंह की फ़ौज की असली शक्ति तुम्ही थे ! सिवाजी तुम्हारे भरोसे पर ही सब कुछ कर सके , जिस कारण उनका नाम आज भी ज़िंदा है | तुम्हारी कुरबानिया स्वर्णाक्षरो में लिखी हुई है | तुम जो नित्यप्रति सेवा करके जनता के सुखो में बढ़ोत्तरी करके और जिन्दगी सम्भव बनाकर यह बड़ा भारी अहसान कर रहे हो , उसे हम लोग नही समझते | लैंड -एलियेनेशन एक्ट के अनुसार तुम धन एकत्र कर भी जमीन नही खरीद सकते | तुम पर इतना जुल्म हो रहा है की मिस मेयो मनुष्यों से भी कहती है --- उठो ' अपनी शक्ति पहचानो | संगठनबद्ध हो जाओ | असल में स्वंय कोशिशे किये बिना कुछ भी न मिल सकेगा |
'Those who would be free must themselve strike the blow "
स्वतंत्रता के लिए स्वाधीनता चाहनेवालो को यत्न करना चाहिए | इंसान की धीरे धीरे कुछ ऐसी आदते हो गयी है कि वह अपने लिए तो अधिक अधिकार चाहता है , लेकिन जो उनके मातहत हुई उन्हें है उन्हें वह अपनी जुटी के नीचे ही दबाए रखना चाहतीहै | कहावत है 'लातो के भुत बातो से नही मानते ' अर्थात सन्गठनबद्ध हो अपने पैरो पर खड़े होकर पुरे समाज को चुनौती दे दो |
तब देखना , कोई भी तुम्हे तुम्हारे देने से इनकार करने की जुर्रत न कर सकेगा | तुम दुसरो की खुराक मत बनो | दुसरो के मुंह की ओर न ताको | लेकिन ध्यान रहे , नौकरशाही के झांसे में तुम मत फसना | यह तुम्हारी कोई सहायता नही करना चाहती ,बल्कि तुम्हे अपना मोहरा बनाना चाहती है | यही पूंजीवादी नौकरशाही तुम्हारी ग्फुलामी और गरीबी का असली कारण है | इसीलिए तुम उसके साथ कभी न मिलना | उसकी चालो से बचना | तब सब कुछ ठीक होगा | तुम असली सर्वहारा हो ... सगठनबद्ध हो जाओ ! तुम्हारी कुछ भी हानि न होगी | बस गुलामी की जजीरे कट जायेगी | उठो और वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध बगावत खड़ी कर दो | धीरे धीरे होने वाले सुधारों से कुछ नही बन सकेगा | सामाजिक आन्दोलन से क्रान्ति पैदा कर दो तथा राजनितिक और आर्थिक क्रान्ति के लिए कमर कस लो | तुम ही तो देश का मुख्य आधार हो , वास्तविक शक्ति हो , सोये हुए शेरो ! उठो , और बगावत खड़ी कर दो |

पर्स्तुती -- सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक

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