Monday, October 31, 2016

लियो टालस्टाय ------ 31-10-16

लियो टालस्टाय




टालस्टाय ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि मैं एक दिन जा रहा था एक राह के किनारे से , एक भिखमंगे ने हाथ फैला दिया | सुबह थी , अभी सूरज उगा था और टालस्टाय बड़ी प्रसन्न मुद्रा में था , इनकार न कर सका | अभी - अभी चर्च से प्रार्थना करके भी लौट रहा था , तो वह हाथ उसे परमात्मा का ही हाथ मालुम पडा | उसने अपने खीसे टटोले , कुछ भी नही था | दुसरे खीसे में देखा , वह भी कुछ नही था | वह जरा बेचैन होने लगा | उस भिखारी ने कहा कि नही बेचैन न हो : अपने देना चाहा , इतना ही क्या कम है ! टालस्टाय ने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया | और टालस्टाय कहता है , मेरी आँखे आँसुओ से भर गयी | मैंने उसे कुछ भी न दिया , उसने मुझे इतना दे दिया | उसने कहा कि आप बेचैन न हो ! आपने टटोला , देना चाहा - इतना क्या कम है ? बहुत दे दिया !

न देकर भी देना हो सकता है | और कभी - कभी दे कर भी देना नही होता | अगर बेमन से दिया तो देना नही हो पाता | अगर मन से देना चाहा , न भी दे पाया , तो भी देना घाट जाता है --- ऐसा जीवन का रहस्य है |
बाटते चलो ! धीरे - धीरे तुम पाओगे , जैसे - जैसे तुम बाटने लगे ऊर्जा , वैसे - वैसे तुम्हारे भीतर से कही परमात्मा का सागर तुम्हे भरता जाता | नई - नई ऊर्जा आटी , नई तरंगे आती | और एक दफा यह तुम्हे गणित समझ में आ जाए ... यह जीवन का अर्थशास्त्र नही है . यह परमात्मा का अर्थशास्त्र है , यह बिलकुल अलग है | जीवन का अर्थशास्त्र तो यह है की जो है , अगर नही बचाया तो लुटे | इसको तो बचाना , नही तो भीख मागोगे !


कबीर ने कहा : दोनों हाथ उलीचिय ! उलीचते रहो तो नया आता रहेगा | बाटते रहो तो मिलता रहेगा | जो बचाया वह गया ; जो दिया वह बचा | जो तुमने बात दिया और दे दिया , वही तुम्हारा है अंतर के जगत में |

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