Wednesday, October 26, 2016

----- आजादी या मौत ------ 25-10-16

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----- आजादी या मौत ------
( गदर पार्टी का संक्षिप्त इतिहास )
तीस जून सत्रह सौ सत्तावन – हिन्दुस्तान के इतिहास में एक काला दिन भागीरथी नदी के तट पर बसा एक गाँव | पलाश – आम्र – कुंजो से घिरा | कोलकाता से डेढ़ सौ किलोमीटर उत्तर में बंगाल राज्य की राजधानी मुर्शिदाबाद से पच्चीस किलोमीटर दूर | पलाश पुष्पों से सुगन्धित पलाशी या प्लासी | इस गाँव में जुटती है दो सेनाये – बंगाल के अंतिम स्वतंत्र नवाब सिराजुद्द्दौला की सेना , अपने पचास हजार सैनिको और फ्रांसीसी तोपों के साथ | दूसरी और ईस्ट इंडिया कम्पनी की सेना राबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में इक्कीस सौ भारतीय और साधे नौ सौ ब्रिटिश सैनिको और एक सौ पचास तोपों के साथ || इस एक दिन के युद्द में जिसमे वर्षा के कारण फ्रांसीसी तोपे भीगकर नाकाम हो गयी थी , विजय क्लाइव और उसकी सेना की होती है – केवल सात यूरोपियन और सोलह भारतीयों की मृत्यु तथा तरेह यूरोपियन और छत्तीस भारतीयों के आहत होने के बाद | वास्तव में यह विजय ईस्ट इंडिया कम्पनी की उतनी नही थी जितनी भारतीयों की पराजय थी --- अपनी नीतियों के कारण सिराजुद्द्दौला को उसकी सेना के पदोंवनत सेनापति मीरजाफर ने एन वक्त पर धोखा दिया | यह सोलह हजार सैनिको का नेतृत्त्व कर रहा था | अंग्रेजो के लालच दिए जाने के कारण वह युद्द से बाहर रहा | आफी और सैनिक भी लालच दिए जाने के कारण वह लोग भी युद्द सी बाहर रहे | साथ ही अन्य लोग यार लतीफ , जगत सेठ अमीरचंद महाराजा कृष्णनाथ रावदुर्लभ आदि अंग्रेजो के प्रलोभन से निष्क्रिय हो गये |
भारतीय सैनिको में राष्ट्रीयता जैसी कोई भावना तो थी नही | जो भी उन्हें खरीद सकता था , खरीद लेता वास्तविकता तो यह है कि इस युद्द में ईस्ट इंडिया कम्पनी का एक पैसा भी खर्च न हुआ | साधे नौ सौ यूरोपियन सैनिको को छोड़कर सारा खून दोनों और से भारतीयों का बहा | इस प्रकार पारम्परिक इर्ष्या शत्रुता विद्देश और नितांत स्वार्थपरता के कारण भारतीयों ने अपने गले में गुलामी की जंजीरे डालने में अंग्रेजो का साथ दिया |
फिर उस साम्राज्य का विस्तार देने तथा उसके सुद्रढ़ रहने में भी भारतीय सैनिको ने अपना खून बहाया | एक दिन के इस युद्द ने भारत को दुर्भाग्य के द्वार पर खड़ा किया और पश्चिम को भाग्योदय के पथ पर |
इस युद्द ने ईस्ट इंडिया क्प्म्नी को भारत का एक समृद्द प्रदेश दे दिया , शासन करने को | बंगाल उस समय भारत का सबसे धनी प्रदेश था | क्षेत्रफल में भी बड़ा | तीन करोड़ की आबादी का प्रदेश , उन्नत उद्योग – धंधे फलता – फूलता व्यापार , राज्यकोष को भरपूर मुद्रा देने वाला | बंगाल पर आधिपत्य होने के बाद अंग्रेजो ने जितनी भी नीतिया अपनाई – कृषि , उद्योग व्यापार सम्बन्धी , वे सब अपना घर भरने के लिए बेशर्मी से की गयी लूट की , इंग्लैण्ड के लिए धन बटोरने की जन – विरोधी थी | स्वंय क्लाइव ने बंगाल के खजाने को जी भर कर लुटा | कम्पनी के क्रमचारियो और अधिकारियों में नैतिकता नाम की कोई चीज न थी | नीच से ईच काम करने में उन्हें कोई हिचक नही थी | वचन देकर तोड़ना उनके लिए गिरगिट के रंग बदलने जैसा था | मीरजाफर को उन्होंने वचन दिया था , नया नवाब बनाने का | बनाया तो मात्र कोई बहाना बनाकर हटाने के लिए | उसके माध्यम से लुट को वैध बनाना ही उनका ध्येय था |
विश्व के और विशेत: भारत के इतिहास में यह पहला अवसर था , जब विजयी शासक की कोई निष्ठा विजित प्रजा के हित – साधन में नही थी | अब तक जितने भी शासक आये थे , वे भारत में भारतीय बनकर रहे | उन्होंने जो भी निर्माण किया इस देश में किया | प्रशासन में अधिकाँश अधिकारी भारतीय रहे | किन्तु ब्रिटिश लोगो में भारत में भारतवासी बनकर रहने की कोई इच्छा न थी , भारत उनके लिए व्यापार की एक मंदी था , अपना कैरियर बनाने का एक सुनहरा अवसर था | यहाँ वे कुछ ही समय में मालामाल होकर वापिस इंग्लैण्ड में जाकर एशोआराम की जिन्दगी बसर करने के लिए आते थे | भारत उनके जीवन का अस्थायी पडाव था | पहली बार भारत वास्तव में एक दुसरे देश का गुलाम बना | जहा उसके भाग्य का निर्णय उसकी धरती पर न होकर सात समन्दर पार ब्रिटेन की संसद में होता था | उन लोगो द्वारा जिनकी निष्ठा अपने देश को स्वंय को उन्नत करने में थी | भारत में की गयी लुट उसका साधन थी |
अंग्रेजो के आगमन से पूर्व भारत के गाँव अपने आप में एक स्वायत्त इकाई थे |
उनकी आर्थिक – सामाजिक – सांस्कृतिक सरचना पर शासको के बदलने का कोई विशेष प्रभाव नही होता था | वे केन्द्रीय शासन – परिवर्तन के प्रति उदासीन थे | उनका मूलमंत्र था , ‘’ को नृप होय हमे का हानि ‘ |
अंग्रेजी शासन ने उनकी वह तंद्रा तोड़ दी |
कम्पनी की अनेक नीतियों में जो दूरगामी परिणामो की जंक थी , शायद सबसे क्रूर नीति थी – व्यापार पर अपना सम्पूर्ण प्रभुत्व जमाना | कम्पनी ने अपने शासित प्रदेश में और शासित प्रदेश से किये जाने वाले व्यापार करने के लिए स्वंय को आयात – निर्यात शुल्क में पूर्णत: मुक्त कर लिया | साथ ही अनेक वस्तुओ के उत्पादकों को धमकी दी कि यदि वे कम्पनी के साथ व्यापार सम्बन्ध रखते है तो और किसी को अपनी उत्पादित वस्तु नही बेचेगे | अनेक बार कम्पनी की आवश्यकताओ से अधिक पैदा हुई वस्तु की फसल को खेतो में ही जला दिया जाता | करी – मूल्य का निर्धारण भी उसी के हाथ में था | बाहर से ( विशेषत: ब्रिटेन से ) आयातित वस्तुओ का विक्रय मूल्य भी वही तय करते | इस प्रकार व्यापार भी एक वृहद् लुट का साधन बन गया उस लुट से समर्थित ब्रिटेन की औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप जब इंग्लैण्ड में मिल स्थापित होने लगा , तो बंगाल के वस्त्र उद्योग की भारी हानि हुई | बंगाल के कारीगरों द्वारा बुना गया कपड़ा विषभर में श्रेष्ठ माना जाता था | ब्रिटेन के घर – घर में उसकी खपत थी | मिलो को सहयोग देने का अर्थ था उस उन्नत गृह – उद्योग को योजनाबद्द तरीके से बर्बाद करना | वही हुआ भी | कम्पनी की नीति के कारण कुछ ही वर्षो में प्रदेश श्रेष्ठ वस्त्रो के निर्यात करने वाले प्रांत के स्थान पर कच्चे माल को पैदा करने वाला स्थान बनकर रह गया | कम्पनी का लाभ दुगना हो गया | कच्चा माल वह मनमानी कम कीमत पर खरीदती और ब्रिटेन में बुने मिल के कपड़ो को स्वंय निर्धारित मूल्य पर बेचती | भारतीय उद्योगों को किस प्रकार योज्नाब्द्द्द नष्ट किया गया गया इसका हृदय विदारक विवरण पंडित सुन्दरलाल की पुस्तक ‘ भारत में अंग्रेजी राज ‘ में विस्तार से दिया गया है |
क्रमश: साभार आजादी या मौत ( गदर पार्टी का संक्षिप्त इतिहास )
लेखक --- वेद प्रकाश ‘’बटुक ‘’

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