Tuesday, October 25, 2016

छोटी बहन अजना सक्सेना से वार्ता - 25-10-16

छोटी बहन अजना सक्सेना से वार्ता -
अंजना कबीर सुर साधिका है कबीर को लगातार पढ़ रही है समझ रही है , मैंने उनसे पूछा ' प्रकृति के साथ सवाद की सम्भावनाये उन्होंने उत्तर दिया मानव और प्रकृति का सम्बन्ध सनातन समय से रहा है | प्रकृति ने मानव जीवन को बेहतरी की दिशा में ले जाने में हमेशा मदद की ... मानव ने भी हर कदम पर इससे तालमेल बैठाते हुए जीवन को सुमधुर बनाया .... हमने अपने को इसका हिस्सा माना और समय - समय पर इससे स्वाद साधा .. आज विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करने लगा है की प्रकृति और इंसान में स्वाद सम्भव है |
''कृ ति' का अर्थ होता है --- रचना , निर्माण |
इस शब्द के पहले 'प्र' उपसर्ग लगा देने से यह शब्द बन जाता है --- 'प्रकृति ' |
'प्र' उपसर्ग का अर्थ होता है -- प्रथम , पहले | इस प्रकार प्र+कृति = प्रकृति का अर्थ हुआ -- वह , जो कृति से भी पहले थी |
'कृति ' यानी कि यह सम्पूर्ण संसार और प्रकृति यानी कि वह , जो इससे भी पहले था | बारीकी के साथ देखने और सोचने पर लगता है कियह प्रकृति ही '' स्वंयभू '' है , जो स्वंय जन्मी है | और फिर इसने क्रमश: इस संसार को बनाया है | प्रकृति को किसी ने भी नही बनाया है | वह तो बनी हुई ही थी | बाद में उसने इस जग को बनाया है | यदि आप इस बात से सहमत है , तो आपको इससे सहमत होने में कोई परेशानी नही होगी कि हमे भी प्रकृति ने ही बनाया है , जैसा कि भारतीय दर्शन में निहित है '' पृथ्वी मेरी माता है , और मैं इसका पुत्र हूँ |
इस प्रकार प्रकृति और मनुष्य के बीच सीधे - सीधे एक जैविक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है |

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