Wednesday, March 2, 2016

गन्ना किसान इस बार भी छला गया --- 3 - 2- 15

गन्ना किसान इस बार भी छला गया ---
प्रदेश सरकार ने लगातार तीसरे साल भी गन्ना के खरीद मूल्य 280 रूपये प्रति किवंटल को ज्यो का त्यों बरकरार रखा है | किसानो द्वारा उसे 350 रु किवंटल किये जाने या कम से कम 300 रु किवंटल किये जाने की दो सालो से मांगो के वावजूद उसमे कोई वृद्दि नही की |
इसके अलावा गन्ना किसानो का पिछ्ला बकाया चुकता करने के मामले को भी बहुत कम महत्व दिया | यही कारण है कि अभी तक मिलो पर किसानो का 2014 -2015 का भी बकाया ( लगभग साढ़े चार हजार करोड़ ) रुपया पड़ा है | इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्देशों के वावजूद मिल मालिको पर कोई बड़ी कार्यवाही नही की गयी |
हालाकि कोर्ट के निर्देशों के अनुसार सरकार द्वारा मिल - मालिको से बकाये की रकम को सख्ती से वसूलने का ब्यान दिया जाता रहा |
लेकिन उसके बाद गन्ना आयुक्त और मिल - मालिको के बीच बातचीत में बकाये की रकम को इतने उतने दिनों में चुकता करने के सरकार के निर्देशों और मिल मालिको के बीच आश्वाशनो के साथ सारा मामला रफा - दफा होता रहा |
चीनी के कम मूल्य के चलते मिलो पर बढ़ते घाटे की मजबूरियों को बताकर चीनी मिल मालिक प्रदेश व देश की सरकारों से सहायता पॅकेज के साथ बिना व्याज का कर्ज भी लेते रहे |
उदाहरण , केंद्र सरकार ने कुछ माह पहले 6000 करोड़ रूपये का व्याज मुक्त ऋण देश की चीनी मिलो को दिया था | इससे पहले भी केंद्र सरकार देश की चीनी मिलो को 4400 करोड़ रु का व्याज मुक्त ऋण और चीनी निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 3300 करोड़ रूपये की सब्सिडी प्रदान की थी |
उत्तर प्रदेश की सरकार भी मिल - मालिको को 40 रूपये प्रति किवंटल का आर्थिक पॅकेज देने के साथ - साथ पेराई के लिए गन्ने का मूल्य बकाया लगाने और किश्तों में भुगतान करने की छुट देती रही है | - पिछले साल गन्ना मूल्य के चीनी मिलो को 280 रु प्रति किवंटल में से 260 रु प्रति किवंटल तुरंत चुकता करने के साथ प्रति किवंटल 20 रूपये का भुगतान पेराई बंद होने के बाद करने की छुट दी गयी थी | मिल - मालिको का उपरोक्त पॅकेज व व्याज मुक्त कर्ज की सहायता मुख्यत: उन्हें गन्ना किसानो का बकाया भुगतान करने के नाम पर दी जाती रही |
इसके वावजूद बकाये का भुगतान थोड़ी - थोड़ी मात्रा में करते हुए चीनी मिले दो साल पहले के बकाये को अभी तक लटकाए हुए है | इसके वावजूद प्रदेश व देश की सरकार चीनी मिलो को ही सुनती है | गन्ना किसानो की समस्याओं व मांगो की उपेक्षा करती रही है | गन्ने का मूल्य बढने से चीनी मिलो का घटा होने की बात मानकर सरकार न केवल गन्ना किसानो का मूल्य नही बढ़ा रही है बल्कि चीनी
मिल मालिको को इन सहायताओ के साथ गन्ना का भुगतान लटकाने की छुट भी देती रही है | उन्हें यह छुट यह जानते हुए दी जाती रही है कि चीनी मिल मालिक न केवल किसानो के बकाये को 2 - 3 सालो तक लटकाए रहते है बल्कि गन्ने की खरीदारिया भी कम ही करते है और कई बार मिलो को पेराई सत्र की समय सीमा से पहले ही बंद कर देते है |
गन्ने की कम खरीद का असली कारण यह नही है कि चीनी मिलो पर उसकी पेराई क्षमता से अधिक गन्ना पहुचता रहा है , बल्कि उसका असली कारण यह है कि चीनी मिले गन्ने की कम पेराई कर और कम चीनी उत्पादन से मूल्य भाव चढाये र्ल्हने का हर सम्भव प्रयास करती है | गन्ने की ज्यादा पेराई और चीनी के ज्यादा उत्पादन से मूल्य भाव के गिरने की सम्भावना बढ़ जाती है | जाहिर सी बात है की कम्पनियों का लक्ष्य ज्यादा चीनी पैदा करना नही बल्कि चीनी व अन्य उत्पादों से ज्यादा मुनाफ़ा पैदा करना है | अब यह काम इसीलिए ज्यादा आसान हो गया है की प्रदेश एवं देश में निजी चीनी मिलो की संख्या अब कही ज्यादा है और वे आपस में संगठित भी है | उनके मुकाबले सरकारी व सहकारी चीनी मिले बहुत ही कम रह गयी है | 25 - 30 साल पहले निजी चीनी मिलो के पास यह ताकत नही थी | उनके मुकाबले सरकारी व सहकारी चीनी मिले मजबूती से खड़ी थी | इन मिलो का घोषित उद्देश्य एवं कार्यप्रणाली क्षेत्र के किसानो के गन्ने की अधिकाधिक खरीद व उसकी पेराई करना तथा अध्यधिक चीनी उत्पादन करना था | इसीलिए उस समय किसानो में अपना कोल्हू से खुद ही पैर कर गुड - भेली बनाने का चलन आम तौर पर जारी था | सरकारी व सहकारी चीनी मिलो द्वारा गन्ने का मूल्य बकाया रखने का वर्तमान समय जैसा संकट भी नही था | इसीलिए उस समय भी किन्ही क्षेत्रो में गन्ने का वाजिब मूल्य न मिलने के चलते गन्ने को खेत में जला देने की घटनाओं के वावजूद किसानो ने गन्ने की खेती में कमी नही की थी |
लेकिन अब सरकारी व सहकारी चीनी मिलो के टूटते जाने या कहिये घाटे के नाम पर उन्हें बंद किये जाने अथवा उसे निजी मालिको को सौपे जाने के साथ निजी चीनी मिलो का दबदबा बढ़ता रहा है | गन्ने की कम पेराई करके किसानो के गन्ना मूल्य को बकाया रखने के साथ सरकारों पर गन्ना मूल्य न बढाने का बढ़ता दबाव मिलो के इसी दबदबे का प्रिल्क्ष्ण है | इसी के परिणाम स्वरूप आम किसान गन्ने की खेती में कमी करने लगे है | मिलो में गन्ना न बेच पाने वाले किसान क्रेशर मालिको को सरकार द्वारा निर्धारित रेट से कही कम मूल्य पर अपना गन्ना बेचने पर मजबूर हो गये है | इन्ही मजबूरियों के चलते किसान गन्ने की खेती को घाटे उठाने वाली खेती मान चुके है या मानते जा रहे है | गन्ने की खेती कम करते जा रहे है |
यह किन्ही केन्द्रीय या प्रांतीय सरकार के गलत निर्णयों का परिणाम नही है , बल्कि यह देश प्रदेश में लागू होती निजिक्रंवादी औद्योगिक नीति का तथा खेती - किसानी को ( खासकर सीमांत छोटे - औसत किसानो की खेतियो को ) नीतिगत रूप से हतोत्साहित करने की वैश्वीकरणवादी नीतियों के परिणाम है | उन्ही नीतियों के अंतर्गत देश - प्रदेश की सरकारे देश की जरुरतो के लिए कृषिगत उत्पादन को बढ़ावा देने तथा देश को खाद्यायन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की निति का परित्याग कर व चीनी जैसे कृषि पर आधारित आवश्यक उत्पादों का विदेशो से आयात बढाने की नीतियों को लागू करते जा रहे है |
इन्ही नीतियों के चलते गन्ने की कम पेराई करने उसका बकाया बनाये रखने का कम चीनी मिले सरकारों के सहयोग व समर्थन से लगातार जारी रखे हुए है | इन्ही नीतियों के फलस्वरूप चीनी मिलो द्वारा गन्ने का मूल्य न बढाने की बात मानकर प्रदेश सरकार ने 2015- 16 के तीसरे साल में भी गन्ने का मूल्य 280 रूपये प्रति किवंटल से आगे नही बढने दिया | जबकि यह बात सरकार बखूबी जानती है की गन्ने की लागत में बढती महगाई के साथ वृद्दि होती रही है |
इसी तरह से बात - बात में साड़ी योजनाओं की रकम किसानो के खातो में सीधे पहुचाने का प्रचार करती रही केंद्र सरकार व प्रांतीय सरकार भी अपनी घोषणाओं व प्रचारों के विपरीत किसानो के बकाये वापस करने के लिए अपनी सहायताए किसानो के खाते में सीधे देने की जगह उन्हें चीनी मिल मालिको को सौपती रही है | मिल मालिको द्वारा किसानो के बकाये चुकता करने के कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी करने के वावजूद सौपती जा रही है |
यह सबकेंद्र व प्रान्त की सरकारों द्वारा चीनी मिल मालिको की खुली पक्षधरता के साथ गन्ना किसानो की उपेक्षा व विरोध का सबूत है | यह स्थिति अगर बदलनी है तो किसानो को संगठित आन्दोलन और दबाव बनाना होगा सरकार पर तभी इनकी भली हो सकती है |
सुनील दत्ता ---------- स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (04-03-2016) को "अँधेरा बढ़ रहा है" (चर्चा अंक-2271) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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