Monday, February 15, 2016

बाल्या डाकू बन गया वाल्मीकि -- 16-2-16

बाल्या डाकू बन गया वाल्मीकि --



कथा है कि बाल्मीकि , इसके पहले कि उसने रामायण लिखी , लुटेरा था , हत्यारा था , डकैत था | नारद को एक सुभ उसने अपनी वीणा पर संगीत छेड़े जंगल से गुजरते देखा | रोका , और कहा कि जो भी हो तुम्हारे पास रख दो !

बहुत लोगो को रोका होगा जिन्दगी में वही उसका धंधा था , लेकिन नारद जैसा व्यक्ति उसे पहली बार मिला था | उसने दो तरह के लोग जाने थे | एक , जो रोकने से डर जाते थे , भयभीत हो जाते थे , थर - थर कापने लगते थे | उसका नाम इतना भयंकर था -- बाल्या भील तब उसका नाम था | उसके नाम से ही लोगो की छाती दहक जाती थी | माताए अपने बच्चो को डराती थी कि भीतर हो जाओ , बाल्य आ रहा है ; अगर गडबड की तो बाल्य को दे देगे | लोग घबडा जाते , गिडगिडाने लगते , जो पास होता दे देते ; या तलवारे खिंच जाती मरने - मारने को तैयार हो जाते | बस तो तरह के लोग देखे थे -- या तो भयभीत या फिर मरने - मारने को राजी ; कायर या हिंसक | लेकिन नारद एक तीसरे तरह के व्यक्ति थे , इसका बाल्या को पहली दफा अनुभव हुआ | और उसी ने उसके जेवण में क्रांति ला दी |

नारद का गीत चलता रहा | जिसे सच्चा गीत मिल गया है , वह रुकता ही नही | नारद की वीणा बजती ही रही | जिसके भीतर की वीणा बज उठी हो , उसकी बहार की वीणा को बजने से कौन रोक सकता है और बाहर की वीणा टूट भी जाए तो भी कुछ अंतर नही पड़ता , भीतर की वीणा अहर्निश बजती रहेगी | नारद भागे न ही गिडगिडाएन लड़ने को को तैयार हुए | बाल्य ठिठका | यह आदमी नए ढंग का था | कहा कि समझे नही क्या ? मैं कहता हूँ जो भी पास हो मुझे दे दो |

नारद ने कहा , पास तो मेरे बहुत कुछ है , मगर तुम ले सकोगे ? पास तो मेरे राम है , मगर लेने की तुम तैयारी है ? मैं तो खोजता ही फिर रहा हूँ उन दीवानों को जो राम को लेने के लिए तत्पर हो | क्या तुमने मुझे पागल समझा है ? किस लिए वीणा बजा रहा हूँ ? और किसके लिए यह गीत है ? और किस लिए यह दूर जंगलो में भटक रहा हूँ ? अरे उन्ही की तलाश है जो लेने को राजी है | तू लेने को राजी है ?
यह और मुश्किल बात थी | इस धन का नाम तो बाल्या ने सुना नही था | यह कौन सा धन है राम ? न कोई पहचान थी , न कोई परिचय था इस धन से |
पूछा कि यह क्या है ? सूना नही | यह जेवर कभी देखे नही | ये आभूषण परिचित नही | तुम किस राम की बात कर रहे हो ?
नारद ने कहा , मेरे भीतर अनंत संगीत उठा है अनहद नाद उठा है | एक ही अभिप्सा है कि कितना बाटू!
बाल्य ने पूछा क्या करना होगा लेने के लिए ?
तो नारद ने कहा , यह जो राम है , यह जो शब्द है राम इसकी गुहार मचानी होगी | यह तेरे हृदय में , तेरी श्वासों में यु ओत - प्रोत हो जाये कि जागे , सोये , मगर अहर्निश राम की धारा तेरे भीतर चलती रहे | यह कचरा इकठ्ठा करके क्या करेगा ? और जिस ढंग से तू इकठ्ठा कर रहा है महगा सौदा है |
नारद ने कहा , तू यह सारा धंधा कर रहा है लुट - पाट का , किस लिए बच्चो के लिए , पत्नी के लिए , पिता के लिए ?
उसने कहा निश्चित ! परिवार है , उसकी चिंता मुझे करनी है |
तो नारद ने कहा , एक कम कर , तू पूछ आ कि इस सबके करने में वे भागिदार है या नही ? और इसके परिणाम में जो भी तुझे भोगना पड़ेगा उसमे उनकी हिस्सेदारी रहेगी कि नही ?

बाल्य ने कहा , मुझे धोखा देने की कोशिश मत करना | नारद ने कहा , तू मुझे वृक्ष से बाढ़ दे |बाल्य नारद को वृक्ष से बाढ़ गया | बाल्य घर गया , उनसे पूछा | पत्नी ने कहा कि मुझे क्या पता तुम कैसे कमाते हो ! मुझे विवाह करके ले आये थे , उस दिन तुमने जिम्मा लिया था मेरे भरण - पोषण का | तुम जानो तुम्हारा काम जाने | मेरा पेट भरना चाहिए , मेरा तन ढकना चाहिए | मेरी कोई भागीदारी ? मुझे पता नही कि तुम क्या करते हो |
बूढ़े पिता ने कहा , मेरा इससे क्या लेना - देना यह तुम्हारा कर्तव्य है बूढ़े पिता का भरण - पोषण | अब तुम पूण्य से करते हो कि पाप से , यह जिम्मेवारी तुम्हारी है |
सब इंकार कर गये | छोटे बच्चे भी इंकार कर गयर | बाल्य सकते में अ गया | जिनके लिए मैं अपने जीवन को गंवा रहा हूँ , उनमे से कोई भी मेरे पाप का भागिदार नही है !
जब वह लौटा तो दुसरा आदमी था | नारद को छोड़ा उसने , पैरो पर गिर पडा , और कहा कि मुझे दे दो वह धन , दे दो वह धन जिसको तुम राम कहते हो ! | मगर बेपढ़ा - लिखा आदमी , इसीलिए कहानी बड़ी प्रीतिकर है कि वह भूल गया कि राम - राम - राम जपना है , वह मरा - मर जपता रहा | लेकिन कहानी कहती है कि वह मारा - मर जप कर परम सिद्दावस्था को उपलब्द्द हुआ |

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