Friday, February 12, 2016

अपनी समानता, सुरक्षा के लिए संघर्ष करने वाली स्त्री के भी अपने सवाल हैं ------ -श्रीमती सुभद्रा राठौर 13-1-16

अपनी समानता, सुरक्षा के लिए संघर्ष करने वाली स्त्री के भी अपने सवाल हैं ------ -श्रीमती सुभद्रा राठौर ---


नॅशनल लोकरंग एकेडमी उत्तर प्रदेश 'प्रतिरोध की संस्कृति ' अवाम का सिनेमा '
कैथी फिल्म फेस्टिवल ' के संयुक्त तत्त्वाधान में मुहीम पहला दिन महादेव के डमरू वादन से शुरू हुआ उसके बाद लोकरंग की उस शैली की प्रस्तुती हुई '' जांघिया नाच '' जांघिया नाच के बारे में कुछ बाते करना चाहूँगा | यह नाच भारतीय कला का कराटे है इस नाच के माध्यम से हमारे पुरखे दलदली जमीन से धुल के गुबार उड़ाते थे यह कला आज विलुप्त हो रही है , इस कला को हम व हमारे साथी सहेज कर रखना चाहते है , इसके साथ ही अन्य कलाओं का प्रदर्शन किया गया इसके बाद जो पहले दिन की परिचर्चा रही |
सत्तर साल - सात सवाल हमारी आजादी के बाद देश की व्यवस्था ने आम नागरिक के हितो की कभी चिंता नही की है | हमारा संबिधान हमे यह हक़ देता है कि देश की व्यवस्था हमारे रोटी - कपड़ा - मकान के साथ ही हमारी स्वास्थ्य के प्रति सजग रहे पर ह व्यवस्था आम आदमी को जानवर से ज्यादा नही समझती है उसे फुर्सत ही नही आम आदमी के बारे में सोचे या समझे इसी कड़ी में सेमिनार की मुख्य वक्ता प्रखर व संवेदनशील आम आदमी के दुःख - दर्द को समझने वाली श्रीमती सुभद्रा राठौ र ने कहा कि आजादी के सात दशक और सात सवाल के अंतर्गत मेरा पहला सवाल तो यह है कि क्या यह आजादी पूरी है ? कडकडाती ठंड, भरी बरसात और जेठ की तीखी गरमी में जब झोपड़ियों को टूटते देखती हूं तो लगता है कि सिर्फ पूंजी न होने से इन्हें अपनी धरती पर अधिकार नहीं है, क्यों ? एक ओर अंतालिया तो दूसरी ओर धारावी , यही हमारा सच क्यों हो गया है ? हमने स्वराज प्राप्ति के बाद लोकतंत्र को चुना, मेरा मानना है कि इससे बेहतर तंत्र कोई हो ही नही सकता । किन्तु स्वार्थ परक राजनीति ने बहुत जल्द मोहभंग की दशा ला दी । तभी तो जनकवि नागार्जुन ने पूछा था .....किसकी है जनवरी किसका अगस्त है? कौन यहाँ खुश ,और कौन यहाँ मस्त है ? ऐसी परिस्थितियां ही तो असंतोष को जन्म देती हैं जो देश के लिए कतई ठीक नही हैं ।ऐसे समय में जबकि ISIS से विश्व हलाकान है , सहिष्णुता असहिष्णुता के मध्य हमें बहुत ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है । सवाल तो कई हैं , सिर्फ स्मार्ट सिटी नही , हमारे गाँव के भी , रोज मरते किसान के भी । सरोकारों से दूर होते मीडिया सवाल हैं तो आज भी अपनी समानता, सुरक्षा के लिए संघर्ष करने वाली स्त्री के भी अपने सवाल हैं । इसके बाद हमारे तीसरे सेसन में 1857 से शुरू हुए इन्कलाब की बाते फिल्मो के माध्यम से बया किया गया -------

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