Saturday, November 14, 2015

कानपुर का '' गरीबखाना '' 14-11-15

कानपुर का '' गरीबखाना ''
जहा सर्वधर्म समभाव बसता है --------
आधुनिकता के इस पागलपन भरे दौड़ में भी कानपूर में एक आशियाना ऐसा भी है जहा भारतीय परम्परा का सयुक्त परिवार सहेज कर रहा है उन मूल्यों को जो पारम्परिक है |
आपने मुसाफिरखाना , यतीमखाना और न जाने कौन - कौन से नाम सुने होंगे लेकिन मैं जिस '' गरीबखाने '' की चर्चा करने जा रहा हूँ वह जगह जहा भारतीय परम्पराओं के साथ जीवन को जीने की लयबद्दता के ताल - मेल को देखा |
जहा दुनिया अपनी परम्पराओं को छोड़कर आधुनिक तौर - तरीको में ढालने की कोशिश कर रही है | वही इस गरीबखाने में भारतीय संस्कृति में जीने वाले लोग एक मिशाल के तौर पर देखे जा सकते है आइये इस गरीबखाने के लोगो से रूबरू होते है , घर की सबसे बड़ी सदस्य माँ फिर पुरुष सदस्यों में सबसे बड़े सुभाष भइया, सुधीर जी , संजय जी इन भाइयो में सामाजिक ताने - बने से लेकर घर के ताने-बाने अदभुत संगम कम शब्दों में मनोभावों की अभिव्यक्ति से बात करते है वैसे ही घर की तीनो बहुए जो एक साथ बहनों की तरह रहती है ,इनकी भी कमेस्ट्री भी अदभुत लगी बाजार भी तीनो एक साथ रसोई में भी तीनो एक साथ यह लगा ही नही तीनो तीन घर से आई हो ऐसा लगा कि तीनो ने इस घर को परम्पराओ व संस्कृति की मजबूत डोर से बाँध रखा है आधुनिकता के लिए कोई स्थान ही न हो घर के बच्चे कुशल , कबीर , नानक सर्वधर्म समभाव का प्रतीक वही दो बेटिया इस चमन के खुबसूरत फूल एक है गेसू तो दूसरी नाजुक इनके बीच चार दिन जीने में इनके जरिये जाना जिन्दगी को इस तरह भी जिया जाता है कही नानक और गेंसू का आपस में प्यार भरा झगड़ा तो कही कबीर और नाजुक में झगड़ा पर वह भी एक दुसरे के प्रेम का प्रतीक इन लोगो के बीच बिताये वह सारे लम्हे स्मरणीय है |


1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-11-2015) को "बच्चे सभ्यता के शिक्षक होते हैं" (चर्चा अंक-2161)    पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    बालदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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