Wednesday, April 1, 2015

अनूठे उस्ताद 1-4-15


काशी नगर के बाहर एक महन्त का आश्रम था  | उनके पास कई लोग अपनी समस्याए लेकर आते और वे उनका   उचित समाधान करते | एक दिन एक शिष्य ने महन्त से प्रश्न किया -- गुरुदेव , आपके गुरु कौन है  ?  आपने  किससे शिक्षा ग्रहण की है  ?  महंत मुस्कुराए और बोले -- '  मेरे एक नही , सैकड़ो गुरु है , जिनसे मैंने सीखा  है  | पर मैं यहाँ तुम्हे दो गुरुओ के बारे में बताता हूँ | इतना कहकर महंत थोडा रुके , फिर बोले - गर्मी  के दिन थे  | मैं एक रोज एक निर्जन मार्ग पर जा रहा था  | राह में चलते हुए मुझे प्यास लगने लगी और मैं पानी की तलाश में घूम रहा था | मुझे वहा  एक पोखरा नजर आया और मैं उस ओर बढ़ गया |  तभी वहा  पर एक कुत्ता आया | वह भी प्यासा था  | जैसे ही वह पानी पीने के लिए पोखरे के नजदीक पहुचा , उसे पानी में एक और कुत्ता नजर आया जो कि वास्तव में उसकी परछाई थी  | कुत्ता उसे देखकर डर गया और भौकते हुए पीछे हट गया | थोड़ी देर बाद वह फिर आया , लेकिन परछाई को देख कर पुन: पीछे हट गया | ऐसा कई बार हुआ | कुत्ता परछाई को देखकर भौकता और पीछे हट जाता | लेकिन जब उससे प्यास सहन नही हुई तो अंतत: वह अपने डर के वावजूद पोखरे में कूद पडा | उसके कूदते ही वह परछाई भी गायब हो गयी  |  यह देखकर उस कुत्ते से मुझे एक बड़ी सीख  मिली कि सफलता उसे ही मिलती है , जो डर का साहस से मुकाबला करता है  | ' शिष्य ने महंत से पूछा -- और आपका दूसरा गुरु कौन था  ? ' मेरा दुसरा गुरु एक छोटा बच्चा था | मैं रात के समय एक गाँव से गुजर रहा था कि मैंने देखा एक छोटा बच्चा जलती मोमबत्ती लेकर जा रहा है  | मैंने उससे पूछा -- क्या यह मोमबत्ती तुमने जलाई  ?  उसके हाँ कहने पर मैंने  उससे कहा ' एक क्षण था जब यह मोमबत्ती बुझी हुई थी और फिर एक क्षण आया , जब यह जल गयी | क्या तुम मुझे वह स्रोत दिखा सकते हो , जहा से वह ज्योति आई ? सुनकर बच्चा  हंसा और मोमबत्ती को फूंक मारकर बुझाते  हुए बोला -- अब आपने ज्योति को जाते हुए देखा है | क्या आप बता सकते है कि वह कहा  गयी ? यह सुनते ही मेरा ज्ञानी होने का अंहकार चकनाचूर हो गया और तबसे मैंने कोरे ज्ञान से हाथ धो लिया | इसके बाद महंत ने शिष्यों को समझाते हुए कहा -- '' शिक्षा  कही से भी और किसी से भी और कभी भी मिल सकती है | जरूरत इस बात की है कि हम हरदम सीखने  के लिए तैयार रहे |

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