Saturday, March 28, 2015

एक मुलाक़ात छोटी बहन आशा पाण्डे ओझा --- सिरोही --------- 28-3-15

बड़ा दादाभाई बनकर गया था - बड़ा बेटा बनकर लौटा हूँ ---------------- सुनील दत्ता
एक परिचय -----------
आशा पाण्डे ओझा ----- शिक्षा - एम् . ए ( हिंदी साहित्य ) एलएलबी
प्रकाशित कृतियाँ --- '' दो बूंद समुद्र के नाम '' एक कोशिश रोशनी की ओर '' ( काव्य ) '' विश्व कविता '' त्रिसुगधि '' का सम्पादन '' ज़र्रे-ज़र्रे में वो है ''
प्रकाशन में -- वक़्त की शाख से ( काव्य ) पाँखी ( हाइकु ) देश के विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं व ई - पत्रिकाओं में कविताएं , मुक्तक , ग़ज़ल , कतआत , दोहा ,हाइकु , कहानी , आलेख , निबन्ध , व्यंग्य एवं शोधपत्र निरंतर प्रकाशित
सम्मान - पुरूस्कार -------
कवि तेज पुरस्कार जैसलमेर ,राजकुमारी रत्नावती पुरस्कार जैसलमेर ,महाराजा कृष्णचन्द्र जैन स्मृति सम्मान एवं पुरस्कार पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी शिलांग (मेघालय ) साहित्य साधना समिति पाली एवं राजस्थान साहित्यअकादमी उदयपुर द्वारा अभिनंदन ,वीर दुर्गादास राठौड़ साहित्य सम्मानजोधपुर ,पांचवे अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विकास सम्मलेन ताशकंद में सहभागिताएवं सृजन श्री सम्मान ,प्रेस मित्र क्लब बीकानेर राजस्थान द्वारा अभिनंदन,मारवाड़ी युवा मंच श्रीगंगानगर राजस्थान द्वारा अभिनंदन ,साहित्य श्रीसम्मान संत कवि सुंदरदास राष्ट्रीय सम्मान समारोह समिति भीलवाड़ा राजस्थान ,सरस्वती सिंह स्मृति सम्मान पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी शिलांग मेघालय ,अंतराष्ट्रीय साहित्यकला मंच मुरादाबाद के सत्ताईसवें अंतराष्ट्रीय हिंदी विकास सम्मलेन काठमांडू नेपाल में सहभागिता एवं हरिशंकर पाण्डेय साहित्य भूषण सम्मान ,राजस्थान साहित्यकार परिषद कांकरोली राजस्थान द्वारा अभिनंदन ,श्री नर्मदेश्वर सन्यास आश्रम परमार्थ ट्रस्ट एवं सर्व धर्म मैत्री संघ अजमेर राजस्थान के संयुक्त तत्वावधान में अभी अभिनंदन ,राष्ट्रीय साहित्य कला एवं संस्कृति परिषद् हल्दीघाटी द्वारा काव्य शिरोमणि सम्मान ,राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुरएवं साहित्य साधना समिति पाली राजस्थान द्वारा पुन: सितम्बर 2013 में अभिनंदन
रूचि :लेखन,पठन,फोटोग्राफी,पेंटिंग,पर्यटन स्वतंत्र लेखन
रंगों और मिटटी से आकृति गढने वाली शिल्पी साथ ही कागज के कैनवास पर शब्दों की अभिव्यक्तियां , कविता हो कहानी या एक ऐसी गृहणी जिसमे सारे वो गुण भरे है | मेरी छोटी क्या खाना बनाती है उसके हाथ से बने व्यंजन अपने जीवन में पहली बार खाये। सारे राजस्थानी व्यंजन ख़ास तौर से हल्दी की बनी सब्जी हो देशी घी में डूबे गुड की छोटी - छोटी डली के साथ बाजरे की रोटी का मिश्रण वो स्वाद कभी भूला नही जा सकता इसके साथ ही माँ के मातृत्व भरा साअधिकार भइया इसको भी खाओ उसको भी लो आंवले की सब्जी और करेला की सब्जी उसकी बात ही क्या ऐसे सर्वगुण सम्पन्न छोटी बहन का प्यार और स्नेह मिलना मेरे लिए सौभाग्य है मैं यह कह सकता हूँ ऐसी छोटी बहन की कल्पना बचपन से रही है कुदरत ने इसे सार्थक कर दिया मैं आशा का बिग बी हूँ यह मेरा सौभाग्य है ---- अपनी छोटी की दृश्य रचनाशीलता देखा क्या कैमरा चलाती है सच में हमारे बहनोई श्री जितेन्द्र पाण्डे भाग्शाली है वो भी बहुत ही प्यारे इंसान है धीर - गंभीर और चिन्तनशील व्यक्तित्व उनसे भी मिलना अपने आप में सौभाग्य है |
अपनी छोटी का एक परिचय -----
उपन्यास , कविता चित्रकला छायाचित्र कला के साथ अनेको विषय पर बात किया उसके कुछ अंश आपको साझा कर रहा हूँ |
अपनी छोटी बहन से कुछ बातो पर चर्चा की ---
सुनील दत्ता --- साहित्य में रूचि कब से हुई - किन - किन विधाओं पर दखल है पहली कविता ---------------- कहानी कब लिखी ?
आशा पाण्डे ओझा -------- कक्षा 9th से ही अपने स्कूल के पुस्तकालय से किताबे लेकर पढ़ना शुरू कर दिया था | जहा तक साहित्य के विधाओं में दखल की बात है , कहानी आलेख , हाइकू,दोहा , ग़ज़ल - नज़्म कविता इन सब पर समान रूप से कार्य कर रही हूँ | पहली कविता में '' दहेज का दैत्य '' और पहली कहानी '' बेबस बुढापा लिखी '' |
सुनील दत्ता -- साहित्य क्या है ?
आशा पाण्डे ओझा --- वर्तमान सामाजिक संक्रमण में साहित्य एक प्रकार की प्रति जैविक औषधि का कार्य करती है |
सुनील दत्ता ---- लेखन के साथ मिट्टी कब गढ़ने लगी ?
आशा पाण्डे ओझा ---- बचपन से ही मेरे अन्दर कुछ चल रहा था मुझे कोई स्वंय प्रेरणा दे रहा था और मेरी उंगलियां स्वत: ही मिटटी से खेलने लगी मैं सेरेमिक वर्क , क्ले पाउडर , पेंटिंग्स , टेराकोटा , पाटरी एवं वेस्ट मैटिरियल से आर्ट एवं क्राफ्ट में काम शुरू कर दिया | अपने इस शौक को अपने तक ही सिमित नहीं रखा बल्कि अलग अलग शेरोन गांवों में जहाँ जहाँ पतिदेव की पोस्टिंग रही बच्चियों महिलाओं को नि:शुल्क सिखाया भी
सुनील दत्ता ---- पहले का हिन्दी साहित्य व वर्तमान हिन्दी साहित्य के लेखन में अन्तर ?
आशा पाण्डे ओझा ----- छात्र जीवन में जो पढ़ा था उस समय के लेखन में आदरणीय साहित्यकार लोग बहुत ही मर्यादित भाषा का प्रयोग करते थे | किसी भी तरह की बात को कहने के लिए भाषा की मर्यादा का उल्लघन नही करते थे -- किसी भी सच्चाई को एक आवरण में लपेट कर में प्रस्तुत किया जाता था ताकि पढने वाला झिझके ना आज के साहित्य में सच्चाई को प्रस्तुत करने के नाम पर जो नंग - धडंग शब्दों में परोसा जाता है उससे लगता है कहीं ना कहीं भारतीय सभ्यता व संस्कृति का ह्रास हो रहा है | सच कहना और सच के नाम पर संस्कारों के कपड़े उतारना में बहुत फर्क है आप देखे निराला , महादेवी वर्मा - प्रेमचन्द्र - इलाचंद्र जोशी, जैनेन्द्र , महादेवी जी और अन्य तमाम बड़े साहित्यकार सच के नाम पर उन्होंने कभी भी भारतीय संस्कृति और उसकी मर्यादा को नष्ट नही होने दिया। ना ही सच के नाम वाहियात शब्दों का प्रयोग किया। आज के लेखक रातों - रात प्रसिद्दी पाने की लालच में ,शर्म और हया की सारी सीमाओं को लांघ जाते हैं | लाज हाय न होना -और बोल्ड होना एक बेसिक अंतर है , बोल्डनेस के नाम पर बिल्कुल बेशर्म होना दूसरी बात है सच लिखा जाए पर नैतिकता का झीना आवरण बहुत जरूरी है |
सुनील दत्ता ---- सोशल मीडिया के इस दौर में लेखकों - कवियों की भरमार सी है ऐसे में लोग लिख तो रहे है परन्तु वे भाषा - विज्ञान से अछूते है आपकी राय ?
आशा पाण्डे ओझा --- कविता आत्मा की संतुष्टि है , विचारों का प्रवाह है, भावनाओं की अभिव्यक्ति है जो शिल्प से जुड़कर कविता लिख रहे है जिन्हें शिल्प का ज्ञान नही है वो अपनी आत्म संतुष्टि के लिए लिख रहे है . कविता का दूसरा अर्थ ही आत्मसंतुष्टि है, कविता - कला ऐसी चीज है जो व्यक्ति के मनोविकारो को समाप्त करता है आदमी को संवेदनशील बनाता है | आदमी में आदमियत को जिन्दा रखता है। आदमी के बचे रहने के लिए संवेदनाओं का बचा रहना जरूरी है . कविता संवेदनाओं का प्रवाह है कविता वही है जो लोग पढ़े तो लगे कि उसकी आप बीती बयां हुई है,और उस कविता से उनके ह्रदय में स्वंय कविता का प्रवाह चलने लगे। हालाँकि आधुनिक कविता के नाम पर कविता को कहीं सीधा सपाट रख दिया जाता है टेढ़ी हो जाती है कि कवि खुद ही भटक कटा है की उसका मूल उद्देश्य व विषय क्या था |
सुनील दत्ता ---- राजस्थान की लोक कला - लोक संस्कृति क्या पहले जैसी ही है या भूमंडलीयकरण से इस पर प्रभाव पडा है ?
आशा पाण्डे ओझा ------ भूमंडलीकरण की इस आंधी ने संस्कारों की नींव हिलाई है पर आज भी राजस्थान दूसरे राज्यों की अपेक्षा अपनी कला - संस्कृति - खान - पान भाषा व संस्कारों को बचाए हुए है यहाँ की जो ख़ास बात है अन्य राज्यों से बेहतर यहाँ की संस्कृति में शर्म-हाय लाज-लिहाज आज भी है मन की कुत्सिता जब सारे संसार में चरम पर है ,यहाँ आज भी स्त्री सुरक्षित है व नारी का आदर है आज भी यहाँ नारी का सम्मान बना हुआ है |
सुनील दत्ता -- साहित्य में वर्चस्व की लड़ाई है आप मानती हैं ?
आशा पाण्डे ओझा --- आदमी नाम का भूखा है अपनी पहचान वजूद जल्दी कायम करना चाहता है | येन- केन प्रकारेण कामयाब होना चाहता है लेकिन एक बात है पीढ़ियां यह तय करेगी कौन साहित्यकार है एक बात और है सोशल मीडिया ने बहुत सा काम किया है - साहित्य के मठाधीशो का पूरा वर्चस्व खत्म कर दिया जो लोग अपने को साहित्य में बड़ा मानते थे उनका भ्रम टूट गया अब वो भी जान गये है उनका तिलस्म खत्म हो चूका है वही नहीं उनसे लाखों हैं जो बेहतर लिख सकते हैं। . बेहतर दे सकते हैं |
सुनील दत्ता --- कुछ अपनी बाते ? जो शब्दों में ढल कर कविता बन गई ?
आशा पाण्डे ओझा हर वो दिल में उतरी कविता बनी, हर वो बात जो दिल को चुभी कविता बनी हर वो बात जो बात ना बना सकी बनी --- अपने मरने के बाद किसी को दान में दे जाना चाहती थी अपनी आँखे ताकि मेरे मरने के बाद भी देख सके इस खुबसूरत जहान को मेरी आँखे पर अब नही देना चाहती किसी को किसी भी कीमत पर अपनी आँखे ये बहता लहू - सुलगते मंजर क्यु देखती रहे - मेरे मरने के बाद भी बेचारी आँखे -----------
----------मन की एक बलिस्त जमीं पर कभी रोपे थे मैंने अपने सपनो के बीज
नहीं दिया तुमने सहमती का पानी बल्कि दी तुमने वर्जनाओं की धूप
रोक ली गई थी बीच में ही मैं उन्हें रोपते हुवे
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तुमने कहा तुम अपनी रिक्तता मुझे दे दो भर दूँगा उसे नहीं मानी मैं क्योंकि रिक्त नहीं थी मैं नस- नस मैं थी उसकी याद हृदय में था उसका कंपन कानों में थी उसकी गूँज होठों पर था उसका नाम आत्मा में था उसका संचार मुझमें था वो रिक्त नहीं थी मैं।"
-----तमाम उम्र मेरे सीने में खंकारती रही तेरी याद बूढी देह की छाती में जमी बलगम सी लाइलाज
-----थक गया दर्द एकल अभिनय करते करते ऐ ख़ुशी तू भी अपना किरदार निभा जरा "

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