Sunday, February 1, 2015

सम्पूर्ण दुनिया के ह्रदय में है गंगा 2-2 15

सम्पूर्ण दुनिया के ह्रदय में है गंगा


अपना भारत सारी दुनिया में न्यारा कुदरत ने हमारे देश को भिन्न - भिन्न  स्वरूपों से सजाया और सवारा है | नदी  नाद का सुख अप्रतिम  | नदिया बहती है , यो ही | निरुद्देश्य गतिशील | नाद करते हुए | अथर्वेद के ऋषि ने गया है -- हे सरिताओ , आप नाद करते हुए बहती है , इसीलिए आपका नाम नदी पड़ा | नदिया भारत के मन का सरगम है , अपनी गति लय में | वे पवित्र है , पवित्र  करती  भी है |

वैदिक ऋषियों ने उन्हें '' पुनाना '' कहा है | बहती है धरती पर , लेकिन भारत के मन और प्रज्ञा को भी सींचती रहती है | गंगा ऐसी ही नदी है | गंगा ऋग्वेद में है | पुराण कथाओं में है | रामायण व महाभारत में है | काव्य . गीत . संगीत सहित सभी ललित कलाओं में है | सिनेमा में भी है | गंगा जैसी ख्यातिनामा नदी विश्व में दूसरी नही है | वे धरती पर बहती है . आकाश की धवल नक्षत्रावली भी आकाश गंगा कही जाती है | वे भारत का सांस्कृतिक प्रवाह है | वे मुक्तिदायनी है |  861404 वर्ग किमी में विस्तृत गंगा का क्षेत्र भारत की सभी नदियों के क्षेत्र से बड़ा है और दुनिया की नदियों में चौथा | 2525 किमी लम्बा यह क्षेत्र देश के पांच राज्यों उत्तराखंड , उत्तर प्रदेश , बिहार , झारखंड और पश्चिम बंगाल तक फैला हुआ है | गंगा तट पर सौ से ज्यादा आधुनिक नगर और हजारो गाँव है | देश की लगभग 40 % जनसख्या गंगा क्षेत्र में रहती है | देश का 47% सिंचित क्षेत्र गंगा बेसिन में है | पयेजल , सिच का पानी और आस्था स्नान में गंगा की अपरिहार्यता है | लेकिन यही गंगा तमाम बांधो , तटवर्ती नगरो के सीवेज और औधोगिक कचरे व शवो को धोने के कारण आज मरणासन्न है |

गंगा भारत का अन्तस् प्रवाह है | हमेशा चर्चा में रहती है | कभी सुख जाने की आशका में तो प्राय: अविरल निर्मल गंगा की भारतीय अभीप्सा में  पिछले दिनों यही गंगा उत्तर प्रदेश में उन्नाव जिले में सौ से उपर शव ढोकर ले आई | हडकम्प मचा | शासन और देश सन्न है | गंगाजल पवित्रता का पर्याय रहा है , लेकिन गंगा में शव डाले जाते है | अधजले शव और पूरे के पूरे भी | नदियों में शव डालने की परम्परा प्राचीन नही है | इसका उल्लेख्य वेदों में नही है | वैदिक ऋषि नदियों को माँ | उन्होंने जल को बहुवचन माताए  कहा है | ऋग्वेद में शव के अग्निदाह का स्पष्ट उल्लेख है | स्तुति है कि हए अग्नि , इस आत्मा को कष्ट दिए बिना संस्कार सम्पन्न करे | इसकी देह को भस्मीभूत करे और इसे पितरो के पास भेज दे शरीर अनेक मुलभुत तत्वों से बनता है | आगे भावप्रवण स्तुति है -- आँखे सूर्य से मिले और प्राण मिले वायु से | अग्नि से प्रार्थना है कि मृतक के अज भाग को आप तेज तपाये , प्रखर बनाये | फिर इसे दिव्य लोक में ले जाए | मृतक के डाह संस्कार से पृथ्वी स्थल दग्ध होता है | वनस्पतिया क्षतिग्रस्त होती है | इसीलिए अंत में अग्नि से ही प्रार्थना  है कि आपने जिस भूस्थल को दग्ध किया है उसे तापरहित  बनाये | यहाँ फिर से घास उगे | पृथ्वी पहले जैसी हो जाए | शव का अग्निदाह वैदिक परम्परा है | शव के नदी प्रवाह की परम्परा होती तो जल से स्तुतिया होती कि इसे अपने साथ ले जाए | इसके शरीर के सड़ने से हे जल आपको कष्ट न हो , आदि | लेकिन शव का  जल प्रवाह के वेदकालीन परम्परा नही है | वैदिक साहित्य में शव के जल प्रवाह के विवरण नही है , लेकिन भूमि में शव को गाड़ने के संकेत ऋग्वेद में है | यहाँ मृतक से प्रार्थना है कि आप सर्वव्यापिनी पृथ्वी माता की गोद में विराजमान हो | ये पृथ्वी माता कोमल वस्त्रो के स्पर्श वाली सभी ऐश्वर्य स्वामिनी है | फिर पृथ्वी से स्तुति है -- हे  पृथ्वी माँ , जिस तरह माता पुत्र को आँचल से ढकती है , उसी तरह इसे आप सब ओर से आच्छादित करे | वैदिक पूर्वजो का जल के साथ रागात्मक नेह रहा है | वे धरती पर प्रवाहित जल को जीवन जानते रहे है |वे भूगर्भ जल के प्रति सचेत रहे है | आकाशचारी मेघो पर उनकी नेह दृष्टि रही है | अविरल जल प्रवाह वैदिक समाज की अभीप्सा रही है | इसलिए पूर्वज नदी में शव प्रवाह करने की बात सोच भी नही सकते थे | गंगा समूचे भारतीय इतिहास में उपास्य और माँ है | गंगा अर्पण , तर्पण और श्रद्दा समर्पण का प्रवाह है , लेकिन हम भारत के लोगो ने अपने  आचरण से ही उनका अस्तित्व  खतरे में डाल दिए है | गंगा सहित सभी नदियों को पुन्नर्वा नवयौवन  देना भारतीय जनगणमन की गहन आकाक्षा होकर ही   है | साधू संत व धर्माचार्य शंकराचार्यों को हुंकार भरने की आवश्यकता है | गंगा , यमुना सहित सभी नदियों में शव सहित सभी प्रदुषणकारी  वस्तुओ को डालने की प्रथा के विरुद्द अभियान चलाए | गंगा में शव डालना दो तरफा निर्ममता है | हम अपने प्रियजन परिजन के शव को जलीय जीव - जन्तुओ के हवाले कैसे कर सकते है ? हम अपनी श्रद्दा , आस्था और प्रणम्य नदियों में प्रियजनों के सड़ते - नहते शव कैसे ब्र्धाशत कर सकते है ? परम्परा कालवाह्य अकरणीय रूढी बनती है |
इसी क्रम में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उत्तर प्रदेश किसान सभा के अध्यक्ष कामरेड इम्तेयाज बेग ने सवाल खड़ा किया '' गंगा को निर्मल बनाने का जो नारा दिया जा रहा है वह तब तक साकार नही हो सकता है जब तक गंगा सहित तमाम बड़ी नदियों से करोड़ो लीटर प्रतिदिन बंद बोतल के पानी पर रोक लगना चाहिए . तमाम औद्योगिक प्रतिष्ठानो के दूषित पानी पाइप द्वारा जो तीस चालीस फूट नीचे जमीन के अन्दर डाले जाने वाले पानी पर प्रतिबन्ध लगना चाहिए इसके अतिरिक्त हमारे पूर्वजो ने अपने गाँव - शहरों में बड़े जलाशय बनवाये थे आजादी के बाद उन जलाशयों को पाटकर बड़े लोगो ने उस पर अट्टालिका बनवा लिया उसको पुन: उसी स्थिति में लाकर वर्ष के पानी को सिंचित किया जाए ताकि पानी की किल्लत खत्म हो सके | तब जाकर देश के छोटी बड़ी नदियों में पानी होगा और तब गंगा से कावेरी तक निर्मल व  स्वच्छ जल अविरल बहता रहेगा |

सुनील दत्ता -- स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक     --------------- साभार -- काशी वार्ता




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